साम वन्दना: दो खोल हमारे बन्धन
ओ3म् उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं वि मध्यमं श्रथाय|
अथादित्य व्रते वयं तवानागसो अदितये स्याम || साम 589 ||
विकराल रूप के अरियों ने कसकर ग्रन्थियां लगाई हैं |
ग्रन्थियां नाथ ढीली कर दो, कर रही बडी कठिनाई हैं ||
ईश्वर उत्तम बलवान तरुण,
तुम हृदय भा गए देव वरुण,
दो खोल हमारे बन्धन ये
अब बनो दास पर देव करुण|
लो हमें उठा हो भँवर पार, आगे आई गहराई है |
ग्रन्थियां नाथ ढीली कर दो, कर रही बडी कठिनाई हैं||
सब उत्तम, मध्यम और अधम,
बन्धन के क्रन्दन हैं कटुतम,
ये बन्धन कर दो शिथिल सभी
जीवन में आये सुख संगम|
आदित्य ओ3म् अविनाशी से, यह हमने आश लगाई है|
ग्रन्थियां नाथ ढीली कर दो, कर रही बडी कठिनाई हैं||
व्रत नियम तुम्हारे अपनायें,
आनन्द मुक्ति का तप पायें,
दु:ख बन्धन शिथिल तभी होंगे
प्रभु से गठबन्धन हो जाये|
यह इसीलिए देकर आहुति, तेरी प्रभु ज्योति जगाई है|
ग्रन्थियाँ नाथ ढीली कर दो, कर रही बडी कठिनाई हैं||
(पन्डित देव नारायण भारद्वाज रचित साम वन्दना से साभार)
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आदरणीय
आदरणीय आर्य जी
यह मन्त्र भी बहुत गहरा मार्ग दर्शन कर रहा है |
"विकराल रूप के अरियों ने कसकर ग्रन्थियां लगाई हैं |
ग्रन्थियां नाथ ढीली कर दो, कर रही बडी कठिनाई हैं ||"
"लो हमें उठा, हो भँवर पार, आगे आई गहराई है |"
"सब उत्तम, मध्यम और अधम,
बन्धन के क्रन्दन हैं कटुतम,"
"ये बन्धन कर दो शिथिल सभी
जीवन में आये सुख संगम|"
"व्रत नियम तुम्हारे अपनायें,
आनन्द मुक्ति का तप [तब] पायें,"
"दु:ख बन्धन शिथिल तभी होंगे
प्रभु से गठबन्धन हो जाये|"
"यह इसीलिए देकर आहुति, तेरी प्रभु ज्योति जगाई है|"
अति उत्तम, बहुत 2 धन्यवाद
आनन्द