साम श्रद्धा : दर्शन का वरदान
ओ३म् चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्ने: ।
आप्रा द्दावा पृथिवी अन्तरिक्षं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च ।
शेष न कुछ अरमान रह गया
दर्शन का वरदान मिल गया ।।
मित्रों में हो स्नेह सुदर्शन ।
अधिपति में अभिनव आकर्षण ।
विद्वानों में ज्ञान निदर्शन ।
इन में प्रभु दिनमान मिल गया ।
तारा मण्डल की उजियाली ।
वसुन्धरा की शुभ दीवाली ।
गगनांगन की छटा निराली ।
कण कण में कल्याण मिल गया ।।
जड़ जंगम का सूर्य सहारा ।
सूर्य दिखाता तेज तुम्हारा ।
तेज तुम्हारा अद्भुत प्यारा ।
भाग्यवान भगवान मिल गया ।
राजेन्द्र अर्य
संगरूर
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श्री आनन्द
श्री आनन्द बक्शी का मैं अति आभारी हुँ जिन्होंने मुझे हिन्दी लिखना सिखाया पग पग पर सहायता की ।
धन्यवाद ।
राजेन्द्र आर्य