नेत्र-उपनेत्र (प्रणेता: पं. देवनारायण भारद्वाज )
ओ३म् अयं सूर्य इवोपदृगयं सरांसि धावति |
सप्त प्रवत आ दिवम् ||साम ७५६ ||
जो सार सुरक्षित रखता है |
दुनिया में वही निखरता है ||
रवि की ओर रहे मुख जिसका |
मुख सदा चमकता है उसका |
जो प्रभु की ओर दौड़ता है ||
प्रभुत्व उसी पर झरता है ||
वह भले सूर्य हो स्वयं नहीं |
पर सूर्य प्रभा हो गहन यहीं |
नभ- सूर्य नेत्र परमेश्वर का,
वह बन उपनेत्र दमकता है ||
सप्त लोक का स्वामी ईश्वर |
वह भी प्रभु- अनुगामी बनकर |
पाकर गुरुजन से, सरस ज्ञान,
लोकों का सार परखता है ||
राजेन्द्र आर्य,
# 362- ए, गुरु नानक पुरा,
सुनामी गेट,
संगरूर 148001 (पंजाब)
चलभाष: 9041342483
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