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Submitted by Rajendra P.Arya on Fri, 2011-09-16 04:44. साम वन्दना
ओ३म् अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये |
नि होता सत्सि बर्हिषि | ||साम १ ||
पावन अपना हृदय सदन हो |
निश्चय प्रभु का शुभागमन हो ||
सब अन्धकार मिट जाता है,
जब सूर्योदय हो जाता है |
आगे आगे प्रभुवर आते
सदगुण का साथ अनुगमन हो ||
प्रभुवर पुण्य प्रेरणा करते,
जिससे जीवन यज्ञ विरचते |
सहज हव्य देवों को मिलता,
पल पल प्रभु प्रभा उन्नयन हो ||
आओ आओ प्रभुवर आओ,
बैठ हृदय में प्रभुवर जाओ |
यहाँ आपके आ जाने से,
यह जीवन आनन्द मगन हो ||
साम श्रद्धा कृति पं. देव नारायण भारद्वाज
राजेन्द्र आर्य
चलभाष 9041342483
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